वीरेन्द्र जैन की व्यंग्य कविता

Posted by Nirbhay Jain Saturday, March 21, 2009, under | 0 comments

जय हो!

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जय हो, जय हो, जय हो, जय हो, जय हो जय हो

लूट मार के बाद सभी का अपना हिस्‍सा तय हो

जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो

दल बदलू वोटों की जय हो

संसद में नोटों की जय हो

लोकतंत्र की इस चौपड़ में

अमरीकी गोटों की जय हो

सीनाजोरी करता फिरता हर दलाल निर्भय हो

जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो

सच पर प्रतिबंधों की जय हो

जाँचों के अन्‍धों की जय हो

लोकतंत्र के नाम चल रहे

सब काले धंधों की जय हो

मतलब तो सीधा सपाट पर पेंचदार आशय हो

जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो

पंजों की कमलों की जय हो

कांटों के गमलों की जय हो

कन्‍याओं पर राम नाम की

सेना के हमलों की जय हो

गूंगी जनता बहरा शासन अंधा न्‍यायालय हो

जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो जय हो

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