राहत इंदौरी की रचना

Posted by Nirbhay Jain Saturday, March 21, 2009, under | 0 comments
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राए ली जाए

मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में
अब कहां जा के सांस ली जाए

बस इसी सोच में हूं डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए

मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए

बोतलें खोल के तो पी बरसों
आज दिल खोल के भी पी जाए

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कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं

रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहां
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं

आंसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने कुआ टूटा है पैमाना दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहीं

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चेहरों की धूप आंखों की गहराई ले गया
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया

डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सरा करें
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया

हालांकि बेज़ुबान था लेकिन अजीब था
जो शख़्स मुझसे छीन के गोयाई ले गया

इस वक़्त तो मैं घर से निकलने ना पाऊंगा
बस इक कमीज़ थी जो मेरा भाई ले गया

झूठे क़सीदे लिखे गए उस की शान में
जो मोतियों से छीन के सच्चाई ले गया

यादों की एक भीड़ में साथ छोड़ कर
क्या जाने वो कहां मेरी तन्हाई ले गया

अब असद तुम्हारे लिए कुछ नहीं रहा
गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया

अब तो खुद अपनी सांसे भी लगती हैं बोझ सी
उम्रों का देव सारी तन्हाई ले गया

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