क्या पाया

Posted by Nirbhay Jain Thursday, August 20, 2009, under | 1 comments
आत्म वंचना करके किसने क्या पाया
कुंठा और संत्रास लिए मन कुह्साया

इतना पीसा नमक झील खारी कर डाली
जल राशिः में खड़ा पियासा वनमाली
नहीं सहेजे सुमन न मधु का पान किया
सर से ऊपर चढ़ी धूप तो अकुलाया

सूर्या रश्मियाँ अवहेलित कर ,निशा क्रयित की
अप्राकृतिक आस्वादों पर रूपायित की
अपने ही हाथों से अपना दिवा विदा कर
निज सत्यों को नित्य निरंतर झुठलाया

पागल की गल सुन कर गलते अहंकार को
पीठ दिखाई ,मृदुता शुचिता संस्कार को
प्रपंचताओं के नागों से शृंगार किया
अविवेकी अतिरेकों को अधिमान्य बनाया

One Response to "क्या पाया"

  1. tulsibhai Says:

    bahut hi gharai bhari baat aapne ched di hai bhai sahi kaha hai aapne " AVIVEKI ATIREKO KO ADHIMANY BANAYA " hai is duniyaane
    aapke blog ki sukhad yatra hame yaad rahegi

    -----eksacchai {AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com