शीर्षक बताइये (प्रतियोगिता)

Posted by Nirbhay Jain Thursday, August 20, 2009, under | 0 comments
आजकल पैसे (धन-दौलत) के लिए प्रत्येक पुरूष पाप प्रवृत्ति हैं। वैसे भी प्रकाशवान (ख्याति) होने के लिए पैसे के पावर में वृद्धि के लिए प्रथम प्रयास करना भी चाहिए लेकिन पापा (पिताश्री) पुत्रों के लिए पाप रहित एकत्रित करें तो इस पुण्य का फल आने वाली पीढ़ी के पुत्रों को भी मिलेगा और हमारे पूर्वज भी प्रसन्न होगें। परमात्मा की प्रतिदिन, प्रतिपल, परम-पवित्र कृपा पीढिय़ों तक परिवार पर बनी रहेगी। परिवार पथभ्रष्ट होने से बचा रहेगा और प्राण त्यागते समय हमें किसी प्रकार का प्रायश्चित भी नहीं करना पड़ेगा।
प्राणी पाप रहित जीवन व्यतीत कर पुरूष से परमहँस की पदवी पाते हैं। पूज्यनीय हो जाते हैं। पारे से निर्मित शिवलिंग की पूजा से पापों का क्षय होता है। पैसा और पावर की वृद्धि होती हैं। पति-पत्नि एक दूसरे को पीडि़त कर परमात्मा शिव के अर्घनारीश्वर स्वरूप को खंडित करने का प्रयास करते हैं उन्हें इससे बचना चाहिये। परमार्थ और प्रेम से बड़ी पूजा सृष्टि से अन्य नहीं हैं। परिवर्तन संसार का नियम है यह भगवान श्री कृष्ण का उद्घोष है। पहले पापा (पिता) बनने की चाह सभी में रहती थी। किन्तु अब पैसे के लिए पापी बनने में कोई कमी नहीं छोड़ते पूर्वकाल में पुराने पूर्वज (बुजुर्ग) कहा करते थे कि परेशारियां हम स्वयं ही पैदा करते हैं। पूरी सृष्टि पंचतत्व पंचमहाभूतों से निर्मित, खण्डित और चलाएमान रहती हैं। प्रेमी, प्रेमिका में परमहित देख रहा है पिता के प्रवचन उसे सिरदर्द लगते है। प्रवचन कर्ता अब प्रथ्वी में परमात्मा की तरह पुज रहे हैं।
पूजा पाठ तो व्यर्थ की बात हो गई है ईमानदारी का पैमाना बदल चुका है। पति प्राणनाथ की जगह साढऩाथ हो रहे हैं। पत्ता (जुआ) और पाखण्ड से धरती लबालब है। परमहितेषी मित्र और प्यार-दुलार करने वाले बुजुर्ग घट रहे है। चारों तरफ, चारों पहर पाप पनप रहा है। पुलिस रक्षक नहीं अब भक्षक हो चुकी है। पापियों को पुरुस्कार और पुण्यात्माओं का धिक्कार मिल रहा है। पृथ्वी से पानी कम, और युवाओं की जवानी अब खत्म होती जा रही हैं।
पत्नी जो सदा रहे तनी और पति जिनकी हो गई है भ्रष्ट मती। प्रत्येक परिवार में ऐसी परिस्थितियाँ बन रही हैं। जो पिता पुत्र को प्रारंभ में प्रभु प्रार्थना कराते थे, वे परम्पराऐं छोड़कर अब पिज्जा खिला रहे हैं। बच्चे पुत्र-पुत्रियाँ पिताजी को प्रणाम की जगह हाय डेड कहने लगे हैं। पवन पुत्र हनुमान की जगह अब प्रवचन करने वाले पंडितों का जय-जयकार हो रही हैं। पसंद की प्रेमिकाऐं पत्नी का पद पा रही हैं। पुरुषार्थ पर अब कोई ध्यान नहीं दे रहा हैं। पौरुष दौर्बल्यता दूर करने वाली औषधियों के अत्याधिक प्रयोग से व्यक्ति पुरुषहीन हो रहा हैं। परनारी और परायेधन पर सबकी दृष्टि हैं। पुस्तकों का प्रकाशन और परहित धर्म केवल पैसा या नाम कमाने के लिए किया जा रहा है। पीडि़त लोग प्रश्नों के उत्तर प्राप्ती हेतु दर-दर भटक रहे हैं। कालसर्प-पितृदोष पैसा कमाने का एक आसान तरीका बन चुका हैं। प्रदूषण युक्त वातावरण के कारण पेट की पाचन शक्ति पूर्णत: खराब हो चुकी हैं।

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