कुछ लिखना है कुछ कहना है

Posted by Nirbhay Jain Monday, September 7, 2009, under | 1 comments
कुछ लिखना है कुछ कहना है
पर शब्द नहीं मिल पाते है
कलम हाथ में लेकर भी
हम कुछ भी लिख न पाते है

कुछ जहन में है कुछ दिल में है
फ़िर भी कुछ कह नही पाते है
मिलने की कोशिश करते है
पर उनसे मिल नही पाते है

कुछ सोच लिया कुछ बोल दिया
वो कुछ न समझ पाते है
हम कोशिश करते रहते है
वो किसी और से मिलने जाते है

कुछ ठेस लगी कुछ घाव हुए
पर दवा लगा नही पाते है
ऐसे जख्मो पर तो शायद
हकीम भी काम ना आते है

कुछ मजनू थे कुछ राँझा थे
हम कौन है समझ न पाते है
एकतरफा चाहने वालो को
सब पागल पागल बुलाते है

One Response to "कुछ लिखना है कुछ कहना है"

  1. alka sarwat Says:

    लग रहा है कि इस रचना पर आपने कुछ मेहनत की है शाबाश ,यूं ही कोशिश करते रहिये ,धीरे - धीरे गलतियां बहुत कम हो जायेंगी ,हिन्दी 'में' मस्ती करने के लिए धन्यवाद ,ऊपर वाला डिसप्ले अभी बाक़ी है