ये कैसी महोब्बत

Posted by Nirbhay Jain Tuesday, August 25, 2009, under | 3 comments


ये कैसी महोबत कहां के फसाने
ये पीने पीलाने के सब है बहाने

वो दामन हो उनका सुमसाम सेहरा
बस हम को तो अब है आंसु बहाने

ये किसने मुझे मस्त नजरों से देखा
लगे खुद-बखुद ही कदम लडखडाने

चलो तुम भी गुमनाम अब मयकदे मे
तुम्हे दफ्न करने है कइ गम पुराने

ये कैसी महोबत कहां के फसाने ....

One Response to "ये कैसी महोब्बत"

  1. नीरज गोस्वामी Says:

    जगजीत सिंह साहब ने कमाल गाया है इस ग़ज़ल को...वाह..
    नीरज