Posted by Nirbhay Jain
Tuesday, August 25, 2009, under
साभार
|
ये कैसी महोबत कहां के फसानेये पीने पीलाने के सब है बहानेवो दामन हो उनका सुमसाम सेहराबस हम को तो अब है आंसु बहानेये किसने मुझे मस्त नजरों से देखालगे खुद-
बखुद ही कदम लडखडानेचलो तुम भी गुमनाम अब मयकदे मेतुम्हे दफ्न करने है कइ गम पुरानेये कैसी महोबत कहां के फसाने ....
जगजीत सिंह साहब ने कमाल गाया है इस ग़ज़ल को...वाह..
नीरज