1. जीवन के संध्या में
सुबह का आनन्द लाओ
किताबों से दोस्ती बाँधो
पन्नों में प्यार पाओ
2. साधारण आदमी
दु:खी है परेशान है
बात-बात पर लड़ता है
प्यार के दो शब्द बोलो
उतना ही झुकता है
3. सम्बन्धों की लड़ाई पर
चितायें मत जलाओ
अगर सम्भव हो सके तो
मरने के बाद भी प्यार फैलाओ
4. मुर्गे की बांग पर
एक पीढ़ी जागती है
एक पीढ़ी सोती है
प्रकृति देख रोती है
5. सुन्दरता का दर्द
उसी को मालूम है
जो मेकअप लगाता है
चेहरा छुपाता जाता है
27, ललितपुर कॉलोनी,
डॉ. पी.एन. लाहा मार्ग, ग्वालियर (म.प्र.)
डॉ. नरेनद्र नाथ लाहा का चिन्तन
Posted by Nirbhay Jain
Saturday, September 19, 2009, under
डॉ. लाहा
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