काश ये दुनिया कंप्यूटर होती
जिसमें डू को अन्डू करते
सुख के लम्हे सेव हो जाते
दुःख के लम्हे डिलीट करते
मर्ज़ी की मनचाही विन्डोज़
जब चाहे हम ओपन करते
मुस्तकबिल के ताने बने
अपनी चाह से ख़ुद ही बनते
ख्वाहिसों की होती फाइल
जिसमें कट और कॉपी करते
जब भी होती वायरस पीडा
दुनिया को रिफोर्मेट करते
खुशियों के रगों को लेकर
फीके लम्हे रंगीन करते
काश ये दुनिया कंप्यूटर होती
तो मज़े मज़े मैं दुनिया जीते
निर्भय जैन
One Response to "काश दुनिया कंप्यूटर होती"
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संगीता पुरी
Says:
निर्मल जैने जी , क्या यह कविता आपने लिखी है ?
जब भी होती वायरस पीडा
दुनिया को रिफोर्मेट करते
बहुत खूब नए नज़रिये के लिये बधाई सही सोच है शायद दुनिया मे इतने तरह के भयानक वायरस आ चुके है कि इसे रिफार्मेट करने की ही आवश्यकता है