काश दुनिया कंप्यूटर होती

Posted by Nirbhay Jain Monday, May 11, 2009, under | 2 comments
काश ये दुनिया कंप्यूटर होती
जिसमें डू को अन्डू करते

सुख के लम्हे सेव हो जाते
दुःख के लम्हे डिलीट करते

मर्ज़ी की मनचाही विन्डोज़
जब चाहे हम ओपन करते

मुस्तकबिल के ताने बने
अपनी चाह से ख़ुद ही बनते

ख्वाहिसों की होती फाइल
जिसमें कट और कॉपी करते

जब भी होती वायरस पीडा
दुनिया को रिफोर्मेट करते

खुशियों के रगों को लेकर
फीके लम्हे रंगीन करते

काश ये दुनिया कंप्यूटर होती
तो मज़े मज़े मैं दुनिया जीते

निर्भय जैन

One Response to "काश दुनिया कंप्यूटर होती"

  1. M Verma Says:

    जब भी होती वायरस पीडा
    दुनिया को रिफोर्मेट करते
    बहुत खूब नए नज़रिये के लिये बधाई सही सोच है शायद दुनिया मे इतने तरह के भयानक वायरस आ चुके है कि इसे रिफार्मेट करने की ही आवश्यकता है

  1. संगीता पुरी Says:

    निर्मल जैने जी , क्‍या यह कविता आपने लिखी है ?