करते करते
थकती नहीं वो
दिन से लेकर
रात तक हर रोज़
उनकी स्थिति
उनकी सम्पन्नता
उनका वैभव
दिखाने को
लाद लेती है
भारी भारी गहने
और कपडे
खूब करती है श्रृंगार
प्रसन्न होकर प्रतिदिन
पूछा जाता है जब
परिचय उसका
बताती है वो
गोत्र उन्ही का
संतान भी उसकी
कहलाती है उनकी
घर, ज़मीन , संपत्ति अंहकार
इन सब से जुड़े
उनके अपराधों को
झेलती है वो -
फिर भी उन्हें
ढकने के लिए
छिपा लेती है
अपना ही मुख
घूंघट की ओट में
(रक्षा शुक्ला )
थकती नहीं वो
दिन से लेकर
रात तक हर रोज़
उनकी स्थिति
उनकी सम्पन्नता
उनका वैभव
दिखाने को
लाद लेती है
भारी भारी गहने
पूछा जाता है जब
घर, ज़मीन , संपत्ति अंहकार
इन सब से जुड़े
इस घूंघट की ओट ने मन को छू लिया।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।