आज कल

Posted by Nirbhay Jain Wednesday, September 2, 2009, under | 0 comments
आज कल आँखें कम सोती हैं
बहुत ज़्यादा रोती हैं

आज कल मनन उदास है
बहुत ज़्यादा रोग के पास है

आज कल दिल कम धड़कता है
बहुत ज़्यादा रुकता है

आज कल तुम्हारी याद आती है
बहुत ज़्यादा सताती है

आज कल कुछ नही समझ आता है
बहुत ज़्यादा भूल भुलाया होजाता है

न जाने ये कैसी बीमारी होती जा रही है
अहिस्ता अहिस्ता हमारी जान लेती जारही है....

-पिंकी वालिया
तुर्की

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