आँखे
Posted by Nirbhay Jain
Tuesday, September 1, 2009, under
ममता की कविता
|
2
comments
जब तीर चला नज़र का
भेद गया मेरे दिल को
जब पलके उठाई उसने
हाय! में कैसे संभालू दिल को
उसकी भोली सी खूबसूरत आँखे
जैसे समझाती है मुझको
झील सी गहरायी है इनमे
तभी तो डूबा लेती है मुझको
उसकी आँखों की चमक ये कहती है
आ छुपा लू दामन में तुझको
क्यों डूबता जा रहा हूँ मै
यह ख़बर नही है मुझको
जब देखे आँखों में अश्क उसके
क्यों संभाल नही पाया में ख़ुद को
खुदा से फरियाद करने लगा मै
दें दें उस नाजनीन के ग़म मुझको
ऐ ममता अब तू ही बता
क्या मिलेंगे उसके ग़म मुझको
-ममता अग्रवाल
बहुत् सुन्दर रचना है बधाइ