ऐ चाँद

Posted by Nirbhay Jain Sunday, August 30, 2009, under | 0 comments
ऐ चाँद तेरी खूबसूरती के दीवाने सब हैं,
मैं भी हूँ…..

तेरी चाँदनी की तरेह रोशन तो नही पर मशहूर
मैं भी हूँ…..

टू भले ही बैठा होगा पलकों पे सबकी,
पर किसी की आंखों की नूर तो
मैं भी हूँ…..

तेरे बादलों में छिप जाने की अदा क्या गज़ब ढाती है,
जब तेरी चांदनी तुझमें आकर सिमट जाती है,

तू नही जानता वो वक्त, वो मंजर ही कुछ और होता है,
जब सारी दुनिया तेरे एक दीदार को तरस जाती है….

ऐ चाँद तू कुदरत की इनायत है,
मैं भी हूँ….

तुझमें अगर दाग है, तो गुनाहगार
मैं भी हूँ……

तेरी हुकूमत भले ही रात तक सीमित होगी,
पर इस हुकूमत की गुलाम तो
मैं भी हूँ…….

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