Posted by Nirbhay Jain
Sunday, August 30, 2009, under
|
हवा बन कर बिखरने से,
उसे क्या फर्क पड़ता हैमेरे जीने या मरने से, उसे क्या फर्क पड़ता है उसे तो अपनी खुशियों से ,
ज़रा भी फुर्सत नही मिलतीमेरे ग़म के उभरने से, उसे क्या फर्क पड़ता है उस शख्स की यादों में, मैं चाहे रोती रहू लेकिनतुम्हारे ऐसा करने से, उसे क्या फर्क पड़ता है
SHUKRIYA. DUA SE AUR HAUSALA AFZAAI SE BAHUT FARQ PADATA HAI.