पिटाई के असीमित आनंद

Posted by Nirbhay Jain Saturday, March 21, 2009, under | 0 comments


एक दिन समाचार पत्र में पढ़ा वे पिटे। शान से पिटे।
कई लोगो के लिए पिटाई जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। यह उनकी सफलता का चोर मार्ग भी है। ऐसे लोगो के लिए पिटना नित्यकर्म के समान होता है। वे निरंतर निर्विकार भाव से पिटते रहते है। जिस प्रकार लहर के थपेडे किनारे की गंदगी को दूर कर देते है उसी प्रकार पिटता हुआ व्यक्ति अपनी मनोविकृतियो से शीघ्र मुक्त हो जाता है।
पिटना अद्भुद कला है। इसमें लालित्य के साथ मधुरता घुली मिली होती है। पिटने पर असीमित आनंद की प्राप्ति हेाती है। पिटार्थी (पिटने वाले) को लक्ष्य प्राप्त करने में देरी नहीं लगती। पिटाई भी कई तरह की होती है। एक पिटाई वह है जिसमे किसी पतिवृता को छेड़ दिया और जूते खा लिए। चोरी या जेबकतरी करते हुए पकडे़ गये और बडी बेरहमी से पीटे गये। ट्रेन में बेटिकट पकडे गये और तबियत से धुने गये। इस तरह के पिटने वाले समाज में कोढ़ के समान होते है। दुनियां उन पर थूकती है। चोरी करते, जेबकतरी करते या किसी युवती को छेड़ते पकडे जाने में ग्लानि, निराशा तथा असफलता छिपी होती है। वह पिटाई (जिसका मै समर्थक हूं) उसमें आनंद, श्रद्धा और सम्मान है। पिटने पिटने में फर्क है। जब जी में आये तबियत से पिटे और आनंददायक, सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करें। पिटता हुआ व्यक्ति अपने अनुकूल मार्ग स्वयं खोज लेता है। उच्च श्रेणी के पिटने वाले योजनाद्ध तरीके से पिटते है। इसके लिए उन्हें विशेष प्रयास करने पड़ते है। अन्यथा पिटने का सौभाग्य विरलो को ही प्राप्त होता है।
संत कबीर कहते है कि:- लाठी में गुण बहुत है सदा राखिये संग ---- । प्रत्येक बुद्धिजीवी जो स्वंय को छोड़कर दुनियां के बारे में दिनरात चिन्तन कर पगलाता रहता है। उसे एक अच्छी तेल पिलाई हुई लाठी अपने पास रखना चाहिए। ज्येांही कोई पिटाई लायक विचार सूझे तुरंत अपने आप को दो चार लाठी जड़ ले। वह इससे तुरंत अपने अनुकूल परिणाम प्राप्त सकता है। संत कबीर ने लाठी रखने का सुझाव दिया है। किसी और पर प्रहार करने की सलाह तो उन्होने भूलकर भी नही दी है। यदि लाठी का उपयोग दूसरों पर किया गया तो आप पीटने वाले हो गये। इस स्थिति में आपका पतन सुनिश्चित है।
राजनीति, धर्म, समाजसेवा एवं अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ऐसे कितने ही लोग है जो पिट कर ही उच्च स्थानों पर आसीन है। यदि वे न पिटे होते तो सड़क पर धक्के खा रहे होते। पिटते समय दुखी रहने वाले मन ही मन प्रसन्न होते होगे कि चलो अच्छा हुआ समय रहते पिट लिए। यदि न पिटते तो शिखर पर कैसे पहुचते। अब्राहिम लिकन जीवन भर पिटते रहे। थपेडे खाते रहे। अंत में सफल हुए। अमेरिका के राष्ट्रपति बने।उन्हें साधारण वकील से राष्ट्रपति जैसा महत्वपूर्ण पद पिटने पर ही प्राप्त हुआ। अतः पिटाई वह कला है जो राष्ट्रनायक बना सकती है। वांछित लक्ष्य तक पहुचा सकती है। सभी मनोकामनाएं समय रहते पूरी कर सकती है।
किसी विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय को छात्रो ने उनके कक्ष में जाकर पीटा। छात्र उन्हे पीट पाट कर भाग गये। कुलपति महोदय ने उन छात्रो की रिपोर्ट करना भी आवश्यक नही समझा। वे रातो रात मीडिया की आंखो का तारा बन गये। छात्रों को क्या मिला? अपयश, बदनामी तथा अंधकारपूर्ण जीवन। दूसरी ओर कुलपति महोदय राज्यपाल बनाकर किसी अन्य राज्य मे पदस्थ कर दिये गये। उन्होने मन ही मन सोचा होगा कि पीटने वालो, उल्लू के पटठो, मैं तो चला राज्यपाल बनकर। तुम लटकते रहो सिटी बसो में, खाते रहो
धक्के जीवन भर। अतः कहा जा सकता है कि पिटना और सफल होना समानुपातिक क्रिया है। जो जितना ज्यादा पिटता है वह उतना ही सफल हो जाता है।
एक देहाती कहावत है “गुरूजी मारे धम्म धम्म विद्या आवै छम्म छम्म”। जिन्होने बचपन में गुरूजी के लात घूसों का स्वाद लिया था वे आज सम्मानजनक पदों पर है। जिस व्यक्ति की बचपन में, स्कूलों में, जितनी अधिक पिटाई हुई वह उतना ही निखरता गया। दूसरी ओर जो बचपन में ऐनकेन प्रकारेण पिटाई से बचते रहे क्या हुआ उनका? कोई नाम लेने वाला भी नहीं है। गूलर के फूल के समान जीवन यापन कर रहे ऐसे लोगो के पास कोई फटकना भी नही चाहता।
पीटने वालो को आम जनता जल्दी भूल जाती है। लेकिन जो पिटता है वह जीवन भर याद रहता है।

जैसे चुनाव में हारा हुआ नेता तथा उसकी मुख मुद्रा हमेशा याद रहती हैं। आम जनता को आश्वासनों वायदों तथा नारों से पीटने वाला कितने दिन याद रह पाता है? अगली वार वह धूल चाटता हुआ दिखाई देता है। अतः पीटने वाला क्षणभंगुर है। पिटने वाला नश्वर। पीटने वाला पीटते ही मर जाता है। उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है। दूसरी ओर पिटने वाला अमर हो जाता है। दुनियां उसे हर रूप में याद रखना चाहती है।
संस्कृत में श्लोक है -

विद्या ददाति विनयं विनयादृयाति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्रोति धनाद् धर्मम्ततः सुखम।।


विद्या से विनयशीलता लपकती हुई आती है। विनय से व्यक्ति हर प्रकार से योग्य बन जाता है। योग्यता आते ही धन कमाने युक्तियां सूझने लगती है। जिसके पास अनापशनाप धन है वही धर्म कर्म कर सकता है। यदि जाने अनजाने में भी धर्म कर्म किया है तो सुख मिलना सुनिश्चित है। श्लोक के प्रारंभ में विद्या को महत्व दिया गया है। विद्या ही वह कारक है जो विनयशीलता, पात्रता, धन, धर्म तथा सुख का कारण बनती है। लेकिन विद्या किस प्रकार आती है? विद्या बचपन में गुरूजी के हाथों पिटने से आती है। अतः पिटना ही वह कारक हे जिसके बिना सब कुछ असंभव है। जो जीवन मे कभी पिटा नही वह विनम्र्र कैसे हो सकता है?
गांधीजी अफ्रीका में पिटे। भारत में स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजो के हाथ कई बार अपमानित किये गये। अंत मे देश को आजाद कराने मे सफल हुए। अनेकों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंगे्रजो की मार खाई। वे सफल रहे। क्या स्वतंत्र भारत की कल्पना उन रणबांकुरो की पिटाई के बिना संभव थी? दूसरी ओर उनका कोई नाम लेने वाला भी नही बचा जिन्होने पीटने वालो (अंग्रेजों) का साथ दिया। पिटने वाले, संघर्ष करने वाले, सर्वत्र नियौछावर कर देने वाले शहीद कहलाये। जिन्होंने पीटने वालो का साथ दिया वे क्षण मात्र के लिए कुकरमुत्ते के समान उदित हुए। फिर हमेशा के लिए नष्ट हो गये।
पिटना हमेशा स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। यह स्फूर्ती देता है। इससे वलबीर्य की वृद्धि होती है। पिटने वाले के विकार शरीर से बाहर आ जाते हैं। त्वचा कंचन हो जाती है। पिटना धैर्य मांगता है। यह समय लेता है। इसमें कुछ समय के लिए कष्ट के साथ साथ मानसिक आघात भी सहना पड़ते हैं। पिटने वाले को तत्काल तो पिटाई का स्वाद कडवी कुनैन के समान लगता है। भोजन से अरूचि हो जाती है। लेकिन पिटाई के दीर्घ कालीन फायदों का तो कहना ही क्या? पिटने वाला अच्छा समय आते ही पीटने वालों पर भारी पड़ जाता है। वह स्वच्छ रात्रि में नक्षत्र बनकर चमकता है। धूमकेतु के समान अपनी आभा चारो ओर बिखेरता रहता है।
इसलिए प्रिय पाठको पिटना सीखो। जमकर पिटना सीखो, हॅसकर हॅसकर पिटना सीखो। जितना
अधिक पिटोगे उतनी ही अधिक प्रसिद्धि प्राप्त करोगे। अपने आप को सर्वोच्च शिखर पर स्थापित कर सकोगे।

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